दीपावली आज:राजयोग में लक्ष्मी पूजा का पहला मुहूर्त शाम 5 बजे से। जानें पूजन की विधि, समय, आरती और ध्यान रखने वाली बातें!

दीपावली आज:राजयोग में लक्ष्मी पूजा का पहला मुहूर्त शाम 5 बजे से। जानें पूजन की विधि, आरती और ध्यान रखने वाली बातें!

आज दीपावली पर दिन में पूजा के मुहूर्त नहीं है। शाम 5 बजे के बाद से ही लक्ष्मी पूजा की जा सकेगी। क्योंकि कार्तिक अमावस्या शाम को शुरू होगी और अगले दिन शाम 5 बजे तक रहेगी। लेकिन 25 को सूर्य ग्रहण रहेगा। इसलिए लक्ष्मी पूजा के मुहूर्त शाम और रात में ही रहेंगे।

2000 साल बाद दीपावली पर बुध, गुरु, शुक्र और शनि खुद की राशि में रहेंगे। साथ ही लक्ष्मी पूजा के समय पांच राजयोग भी रहेंगे। ये ग्रह योग सुख-समृद्धि और लाभ का संकेत दे रहे हैं। इसलिए इस बार दिवाली बहुत शुभ रहेगी।

Diwali Puja Vidhi 2022: दीपावली पर इस विधि से करें लक्ष्मी पूजा और आरती, जानें घर, दुकान, ऑफिस के पूजा मुहूर्त!

इस बार दीपावली (Diwali 2022) का पर्व 24 अक्टूबर, सोमवार को मनाया जाएगा। अमावस्या तिथि शाम 5 बजे बाद शुरू होने से लक्ष्मी पूजा का मुहूर्त भी शाम का ही रहेगा। दिन भर लक्ष्मी पूजा नहीं की जा सकेगी। ऐसा संयोग बहुत कम बार बनता है जब दीपावली पर दिन में पूजा का कोई भी शुभ मुहूर्त न हो। सोमवार को देर रात तक दुकान व कारखानों में पूजा की जा सकेगी। आगे जानिए घर के लिए पूजा के शुभ मुहूर्त साथ ही दुकान, कारखाने व ऑफिस के लिए पूजा मुहूर्त भी। इसके अलावा दीपावली पूजन की विधि, आरती व अन्य खास बातें। 

लक्ष्मी पूजा मुहूर्त (घर के लिए) 

शाम 05:40 से 06:25 तक
शाम 07:15 से रात 09:32 तक
रात 11:43 से 12:40 तक

दुकान के लिए पूजा के शुभ मुहूर्त 

शाम 05:50 से 07:15 तक
रात 08:05 से 09:05 तक
रात 10:34 से 12:11 तक

ऑफिस के लिए पूजा के शुभ मुहूर्त 

शाम 06:05 से 07:32 तक
रात 07:50 से 08:40 तक
रात 10:34 से 12:11 तक

फैक्ट्री के लिए पूजा के शुभ मुहूर्त 

शाम 07:15 से रात 09:05 तक
रात 11:43 से 12:40 तक
रात 01:45 से 03:46 तक

इस विधि से करें देवी लक्ष्मी व श्रीगणेश की पूजा 

शुभ मुहूर्त में घर के किसी हिस्से को गंगाजल से पवित्र करें और वहां चौकी स्थापित करें। चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और गणेशजी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी की मूर्ति स्थापित करें। देवी की मूर्ति के पास ही एक बर्तन में कुछ रुपए भी जरूर रखें। ये मंत्र बोलकर पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-

ऊं अपवित्र: पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:।।

इसके बाद हाथ में जल और चावल लेकर पूजा का संकल्प लें-

ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां तिथौ वासरे (वार बोलें) गोत्रोत्पन्न: (गोत्र बोलें)/ गुप्तोहंश्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाताज्ञातकायिकवाचिकमानसिक सकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मीप्राप्तये श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजनं करिष्ये। तदड्त्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये।

संकल्प के बाद जल धरती पर छोड़ दें। बाएं हाथ में चावल लेकर मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन चावलों को प्रतिमा पर छोड़ते जाएं-

ऊं मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु। विश्वे देवास इह मादयन्तामोम्प्रतिष्ठ।।
ऊं अस्यै प्राणा: प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणा: क्षरन्तु च।
अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन।।

सबसे पहले भगवान श्रीगणेश को तिलक लगाकर पूजा करें। इसके बाद कलश पर स्वस्तिक बनाकर पूजा करें। इसके बाद श्रीमहालक्ष्मी को तिलक लगाएं और अबीर, गुलाल, हल्दी, चंदन, चावल आदि चीजें चढ़ाकर प्रार्थना करें-

सुरासुरेंद्रादिकिरीटमौक्तिकै-
र्युक्तं सदा यक्तव पादपकंजम्।
परावरं पातु वरं सुमंगल
नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये।।
भवानि त्वं महालक्ष्मी: सर्वकामप्रदायिनी।।
सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि नमोस्तु ते।।
नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये।
या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात्।।
ऊं महालक्ष्म्यै नम:, प्रार्थनापूर्वकं समस्कारान् समर्पयामि।

पूजा के अंत में कृतोनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम। यह बोलकर सभी पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल छोड़ें।

इस विधि से करें बहीखाता पूजन

दीपावली पर बहीखातों की पूजा भी की जाती है। बहीखातों पर रोली या केसर युक्त चंदन से स्वस्तिक बनाएं और थैली में पांच हल्दी की गांठें, धनिया, कमलगट्टा, चावल, दूर्वा और कुछ रुपए रखकर उससे देवी सरस्वती की पूजा करें। देवी सरस्वती का ध्यान इस प्रकार करें-
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवै: सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती नि:शेषजाड्यापहा।।
ऊं वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नम:
इसके बाद गंध, फूल, चावल आदि चढ़ाकर पूजा संपन्न करें।


इस विधि से करें कुबेर पूजन

धन स्थान यानी तिजोरी या गल्ले के ऊपर स्वस्तिक का चिह्न बनाएं और फिर भगवान कुबेर का आह्वान करें-
आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु।
कोशं वद्र्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर।।
आह्वान के बाद ऊं कुबेराय नम: इस नाम मंत्र से गंध, फूल आदि से पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें-
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवान् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पद:।।
इस प्रकार प्रार्थना कर हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, रुपए, दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी मे रखें।

इस विधि से करें दीपमालिका (दीपक) पूजन

एक थाली में 11, 21 या उससे अधिक दीपक जलाकर देवी महालक्ष्मी के चित्र के पास रखकर उस दीपज्योति का ऊं दीपावल्यै नम: इस नाम मंत्र से पूजा कर प्रार्थना करें-
त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चनद्रो विद्युदग्निश्च तारका:।
सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नम:।।
दीपकों की पूजा कर संतरा, ईख, धान इत्यादि पदार्थ चढ़ाएं। 


ऐसे करें मां लक्ष्मी की आरती 

देवी लक्ष्मी की आरती के लिए एक थाली में स्वस्तिक बनाकर शुद्ध घी का दीपक जलाएं। एक अलग थाली में कर्पूर रख कर पूजन स्थान पर रख लें। आरती की थाली में ही एक कलश में जल लेकर स्वयं पर छिड़क लें। पुन: आसन पर खड़े होकर घंटी बजाते हुए महालक्ष्मीजी की आरती करें-
ऊं जय लक्ष्मी माता, जय लक्ष्मी माता।
तुमको निसिदिन सेवत हर विष्णु-धाता।। ऊं।।
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग माता।
सूर्य-चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।। ऊं...।।
दुर्गारूप निरंजनि, सुख-सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, रिद्धि-सिद्धि धन पाता।। ऊं...।।
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनी, भवनिधिकी त्राता।। ऊं...।।
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता।
सब संभव हो जाता, मन नहिं घबराता।। ऊं...।।
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पान का वैभव सब तुमसे आता।। ऊं...।।
शुभ-गुण-मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि-जाता।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता।। ऊं...।।
महालक्ष्मी(जी) की आरती, जो कोई नर गाता।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता।। ऊं...।।

दोनों हाथों में कमल आदि के फूल लेकर हाथ जोड़ें और यह मंत्र बोलें-

ऊं या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां ह्रदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्।।
ऊं श्रीमहालक्ष्म्यै नम:, मंत्रपुष्पांजलिं समर्पयमि।
ऐसा कहकर हाथ में लिए फूल महालक्ष्मी पर चढ़ा दें। प्रदक्षिणा कर प्रणाम करें, पुन: हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना करें-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि।।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
सरजिजनिलये सरोजहस्ते धनलतरांशुकगंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्वभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।।
पुन: प्रणाम करके ऊं अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मी: प्रसीदतु। यह कहकर जल छोड़ दें। इसके बाद चावल लेकर श्रीगणेश व महालक्ष्मी की प्रतिमा को छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओं पर चावल छोड़ते हुए निम्न मंत्र से विसर्जित करें-
यान्तु देवगणा: सर्वे पूजामादाय मामकीम्।
इष्टकामसमृद्धयर्थं पुनरागमनाय च।।
इस प्रकार दीपावली पर पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।

स्कंद, पद्म और भविष्य पुराण में दीपावली को लेकर अलग-अलग मान्यताएं हैं। एक कथा के मुताबिक महाराज पृथु ने पृथ्वी दोहन कर देश को धन और धान्य स‌े समृद्ध बनाया। इसलिए दीपावली मनाते हैं। श्रीमद्भागवत और विष्णुधर्मोत्तर पुराण के मुताबिक समुद्र मंथन से कार्तिक महीने की अमावस्या पर लक्ष्मी प्रकट हुई थीं।

मार्कंडेय पुराण का कहना है कि जब धरती पर सिर्फ अंधेरा था तब एक तेज प्रकाश के साथ कमल पर बैठी देवी प्रकट हुईं। वो लक्ष्मी थीं। उनके प्रकाश से ही संसार बना। इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजा की परंपरा हैं। वहीं, श्रीराम के अयोध्या लौटने के स्वागत में दीपावली मनाने की परंपरा है।

पुराणों में है सजावट और दीपक लगाने की बात

स्कंद और पद्म पुराण के अनुसार इस दिन दीपदान करना चाहिए। इससे पाप खत्म हो जाते हैं। ब्रह्म पुराण कहता है कि कार्तिक अमावस्या की आधी रात में लक्ष्मी अच्छे लोगों के घर आती हैं। इसलिए घर को साफ और सजाकर दीपावली मनाने की परंपरा है। इससे लक्ष्मी खुश होती हैं और लंबे समय तक घर में रहती हैं।

दिवाली पूजा ऐसे करें

1. पानी के लोटे में गंगाजल मिलाएं। वो पानी कुशा या फूल से खुद पर छिड़कर पवित्र हो जाएं।
2. पूजा में शामिल लोगों को और खुद को तिलक लगाकर पूजा शुरू करें।
3. पहले गणेश, फिर कलश उसके बाद स्थापित सभी देवी-देवता और आखिरी में लक्ष्मी पूजा करें।

गणेश पूजा की सरल विधि

ॐ गं गणपतये नम: मंत्र बोलते हुए गणेश जी को पानी और पंचामृत से नहलाएं। पूजन सामग्री चढ़ाएं। नैवेद्य लगाएं। धूप-दीप दिखाएं और दक्षिणा चढ़ाएं।

बहीखाता और सरस्वती पूजा

फूल-अक्षत लेकर सरस्वती का ध्यान कर के आह्वान करें। ऊँ सरस्वत्यै नम: बोलते हुए एक-एक कर के पूजन सामग्री देवी की मूर्ति पर चढ़ाएं। इसी मंत्र से पेन, पुस्तक और बहीखाता की पूजा करें। इसके बाद विष्णु पूजा करें।

विष्णु पूजा की विधि

मंत्र - ॐ विष्णवे नम:

भगवान विष्णु की मूर्ति को पहले पानी फिर पंचामृत से नहलाएं। शंख में पानी और दूध भर के अभिषेक करें। फिर कलावा, चंदन, अक्षत, अबीर, गुलाल और जनेऊ सहित पूजन सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद हार-फूल और नारियल चढ़ाएं। मिठाई और मौसमी फलों का नैवेद्य लगाएं। धूप-दीप दिखाएं और दक्षिणा चढ़ाकर प्रणाम करें।

दीपक पूजन

मंत्र - ॐ दीपावल्यै नम:

1. एक थाली में 11, 21 या उससे ज्यादा दीपक जलाकर लक्ष्मी जी के पास रखें।
2. फूल और कुछ पत्तियां हाथ में लें। साथ में पूजन सामग्री भी लें।
3. मंत्र बोलते हुए फूल पत्तियां चढ़ाते हुए दीपमालिकाओं की पूजा करें।
4. दीपक की पूजा कर संतरा, ईख और धान चढ़ाएं।
5. धान भगवान गणेश, महालक्ष्मी और सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करें।

विष्णु जी के बिना लक्ष्मी एक भी पल कहीं ठहरती नहीं है, इसलिए विष्णु-लक्ष्मी की पूजा एक साथ करें!

लक्ष्मी-विष्णु की पूजा करें एक साथ

दीपावली पूजा के लिए सबसे जरूरी बात ये है कि लक्ष्मी जी की पूजा विष्णु जी के बिना न करें। मान्यता है कि देवी लक्ष्मी अपने पति विष्णु जी के बिना एक भी पल कहीं ठहरती नहीं हैं। अगर लक्ष्मी जी की स्थाई कृपा पाना चाहते हैं तो लक्ष्मी-विष्णु की पूजा एक साथ करनी चाहिए।

किस दिशा में करें लक्ष्मी पूजा

दीपावली पूजन करते समय सफेद कपड़े पहनेंगे तो ज्यादा बेहतर रहेगा। शाम को लक्ष्मी पूजा करते समय उत्तर या पश्चिम दिशा में मुख रखें और पूजन करें।

अलक्ष्मी के लिए भी जलाएं दीपक

दीपावली की शाम किसी पीपल के नीचे एक दीपक जरूर जलाएं। मान्यता है कि लक्ष्मी जी की बड़ी बहन अलक्ष्मी का वास पीपल के पास ही होता है। पीपल के नीचे दीपक जलाने का भाव ये है कि अलक्ष्मी सदैव वहीं रहें और हमारे घर न आएं।

दीपावली पर तुलसी न तोड़ें, पहले गिरे पत्तों का करें इस्तेमाल

ध्यान रखें अमावस्या पर तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए। पुराने पत्तों को धोकर फिर से पूजा में इस्तेमाल कर सकते हैं। अगर पुराने पत्ते नहीं हैं तो तुलसी के पास नीचे गिरे हुए पत्तों को धोकर पूजा में इस्तेमाल कर सकते हैं। विष्णु पूजा में तुलसी के साथ ही भोग लगाना चाहिए।

तुलसी को ओढ़ाएं चुनरी और जलाएं दीपक

दीपावली की शाम तुलसी के पास रंगोली बनाएं। तुलसी की भी सजावट करें। लाल चुनरी ओढ़ाएं। दीपक जलाएं।

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