झारखंड में नशे के कारोबार ने नया और खतरनाक रूप ले लिया है, किसानों से लीज पर खेत लेकर नशे की खेती धड़ल्ले से हो रही है। झारखंड की युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है!
झारखंड में नशे के कारोबार ने नया और खतरनाक रूप ले लिया है, किसानों से लीज पर खेत लेकर नशे की खेती धड़ल्ले से हो रही है। झारखंड की युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है!
बाहरी कारोबारी खेती में लगा रहे पैसे , सौदागर साल में 1 लाख रु. प्रति एकड़ किसानों को दे रहे हैं। मुंबई के ट्रेनर से प्रोसेस करने का तरीका सीखा जा रहा है और मशीन लगाकर ब्राउन शुगर को तैयार किया जा रहा है यही नहीं सप्लाई के लिए पैडलर की मदद ली जा रही है।
पैडलर ही हजारीबाग, रांची, बोकारो, जमशेदपुर, धनबाद जैसे बड़े शहरों के स्कूल-कॉलेज और हॉस्टल के बच्चों तक आसानी से सुगर और अफीम पहुंचा रहे हैं।
पैडलर अफीम को ब्लैक टेरर, ब्राउन शुगर को व्हाइट हॉर्स, डोडा को पाउडर और गांजा को कूल-कूल के कोड नाम से बेचते हैं। छात्रों के बीच इसे है...ना... भी कहा जाता है।
चतरा, हजारीबाग, गढ़वा, लातेहार, खूंटी, सिमडेगा, लोहरदगा, गुमला, सरायकेला आदि जिलों में किसान कम मेहनत और ज्यादा मुनाफा के चक्कर में जमीन लीज पर दे रहे हैं।
झारखंड में नशे के कारोबार ने नया और खतरनाक रूप ले लिया है। किसानों से लीज पर खेत लेकर अफीम की खेती धड़ल्ले से हो रही है। मुंबई के ट्रेनर से प्रोसेस करने का तरीका सीखा जा रहा है और मशीन लगाकर ब्राउन शुगर को तैयार किया जा रहा है। यही नहीं सप्लाई के लिए पैडलर की मदद ली जा रही है। पैडलर ही हजारीबाग, रांची, बोकारो, जमशेदपुर, धनबाद जैसे बड़े शहरों के स्कूल-कॉलेज और हॉस्टल के बच्चों तक आसानी से सुगर और अफीम पहुंचा रहे हैं। इसकी वजह से झारखंड की युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है। झारखंड के अख़बार ने पड़ताल की तो पता चला कि चतरा, हजारीबाग, गढ़वा, लातेहार, खूंटी, सिमडेगा, लोहरदगा, गुमला, सरायकेला आदि जिलों में किसान कम मेहनत और ज्यादा मुनाफा के चक्कर में जमीन लीज पर दे रहे हैं। सौदागर साल में 1 लाख रु. प्रति एकड़ किसानों को दे रहे हैं, जिस पर अफीम लगाते हैं। 4 महीने में अफीम तैयार हो जाती है। पैडलर अफीम को ब्लैक टेरर, ब्राउन शुगर को व्हाइट हॉर्स, डोडा को पाउडर और गांजा को कूल-कूल के कोड नाम से बेचते हैं। छात्रों के बीच इसे है...ना... भी कहा जाता है।
चतरा में नक्सली संगठनों ने फंडिंग के लिए 1993 में संरक्षण देकर अफीम की खेती शुरू कराई थी। अब मुनाफे के लिए किसान खुद करने लगे।
चतरा के महुआ मोड़ सहित कई ठिकानों पर ब्राउन शुगर बनाने की मशीनें लगी हैं। मुंबई के ट्रेनर इसे बनाने की ट्रेनिंग दे रहा है। सूत्रों के मुताबिक, अफीम की खेती में दूसरे राज्यों के कारोबारी पैसा लगा रहे हैं। खूंटी, सिमडेगा, गढ़वा, चतरा में कई लोग लीज पर जमीन लेकर इसकी खेती कर रहे हैं। चतरा में नक्सली संगठनों ने फंडिंग के लिए 1993 में संरक्षण देकर अफीम की खेती शुरू कराई थी। तब नक्सलियों के डर से कोई विरोध नहीं करता था। अब मुनाफे के लिए किसान खुद करने लगे। 2004 में चतरा अफीम का बड़ा बाजार बन गया और दूसरे राज्यों में बेचा जाने लगा। 2016 में यहां ब्राउन शुगर का निर्माण शुरू हो गया।
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