काला गेहूं डायबिटीज के लिए अनुकूल : बड़कागांव में औषधीय गुणों से भरे काले गेहूं की खेती

काला गेहूं डायबिटीज के लिए अनुकूल : बड़कागांव में औषधीय गुणों से भरे काले गेहूं की खेती

प्रवीण कुमार मेहता को प्रखंड स्तर से लेकर राज्य स्तर तक कई बार कृषि के क्षेत्र में पुरस्कार मिल चुका है।

काला गेहूं का बीज 200 रुपए प्रति किलाे की दर से बिकती है। झारखंड के गिने-चुने जगह पर ही काला गेहूं की खेती का शुभारंभ किया गया है उसमें बड़कागांव भी एक है।


हेल्थ होम के प्रोपराइटर किसान प्रवीण कुमार ने पिछले कई वर्षों से खेती पर रिसर्च किए हैं। बड़कागांव में परवल (पटल) की खेती के अलावा कई तरह के फसलों को लगाकर एवं बेहतर उत्पादन दिखला कर अपना लोहा मनवाया हैं। प्रवीण अब बड़कागांव में पहली बार काला गेहूं लगाकर बेहतर उत्पादन करने का प्रयास किया है। 


काला गेहूं का बीज 200 रुपए प्रति किलाे की दर से बिकती है। झारखंड के गिने-चुने जगह पर ही काला गेहूं की खेती का शुभारंभ किया गया है उसमें बड़कागांव भी एक है।

साधारण गेहूं से काले का उत्पादन 20% कम, किसी भी मौसम में लगाएं। 

हालांकि काला गेहूं का उत्पादन साधारण गेहूं से 20% कम होता है परंतु साधारण गेहूं के गुण से काला गेहूं में कई विशेष गुण पाए जाते हैं। उक्त काला गेहूं के बीज को लगाने के लिए साधारण गेहूं की तरह ही लगाया जाता है। इसके लिए कोई विशेष मौसम की आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने आगे बताया कि इसके पूर्व मैंने झारखंड में परवल यानी पटल की खेती को बढ़ावा देने के लिए कई जिलों में जाकर किसानों को परवल लगाने का प्रशिक्षण भी दिया एवं प्रोत्साहित किया। जिससे आज अब झारखंड में भी परवल की खेती होने लगी है। वहीं एक अन्य छत्तीसगढ़ की वीएनआर अमरूद की खेती पर झारखंड में पहली बार विशेष ध्यान दिया जा रहा है, अभी फिलहाल हमारे यहां आधा -आधा किलो की अमरूद का उत्पादन हो रहा है।


जिंक व आयरन की मात्रा अधिक

इस काला गेहूं में शुगर की मात्रा काफी कम पाई जाती है वहीं जिंक एवं आयरन की मात्रा अधिक होती है। इसके अलावा काला गेहूं कई औषधीय गुणों से भरा है। कोलेस्ट्रोल, शुगर, केंसर रोगों के लिए यह गेहूं अनुकूल माना जाता है।

झारखंड के हजारीबाग जिला अंतर्गत बड़कागांव प्रखंड में भी अब परवल (पटल) की खेती होने लगी है। 

इसका श्रेय पर्यावरण प्रेमी प्रवीण कुमार मेहता को जाता है। पहले परवल (पटल) की खेती हजारीबाग जिले के अधिकांश प्रखंडों में नहीं हुआ करता था। सब्जी के रूप में व्यापारियों द्वारा पश्चिम बंगाल, उत्तराखंड, बिहार समेत अन्य राज्य एवं जिलों से खरीदा जाता था। इस कारण परवल का बाजारों में ऊंची कीमत पर बिक्री होती थी। लेकिन, इधर कुछ समय से यहां के किसानों को भी परवल की खेती की ओर प्रोत्साहित किया गया और अब परवल की खेती से यहां के किसान भी समृद्ध होने लगे हैं।

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