हजारीबाग के चौपारण में 500 एकड़ भूमि पर लहलहा रहे अफीम के पौधे, करोड़ों का कारोबार।

हजारीबाग के चौपारण में 500 एकड़ भूमि पर लहलहा रहे अफीम के पौधे, करोड़ों का कारोबार

इस वर्ष बीते पांच सालों की तुलना में दोगुना खेती की जा रही है।

सुत्रों से मिली जानकारी के अनुसार चतरा, खुंटी सहित दूसरे राज्यों की फंडिंग से नशे का काला कारोबार फलफूल रहा है।

झारखंड के सीमांत हजारीबाग जिले के चौपारण प्रखंड बड़ी तेजी से नशे के बडे़ बाजार में तब्दील हो रहा है। बीते लगभग पांच सालों से अफीम की बड़ी खेती प्रखंड के भू-भाग पर की जा रही है। अनुमान के मुताबिक 20 से 40 करोड़ का अवैध व्यवसाय नशे की खेप की वजह से होती है। परंतु इस वर्ष अफीम की खेती सर्वाधिक की गई है। लगभग 500 एकड़ से अधिक वन भूमि का इस्तेमाल इसकी खेती के लिए की गई है। वन क्षेत्रों में नदी, नाले से सटे जंगल को साफ कर समतल भूमि बनाकर, यहां तक की पहाड़ियों पर भी इसकी खेती की जा रही है।

एक समय उग्रवादियों के लिए चर्चित कौलेश्वरी और मगध जोन अब इनके लिए सर्वाधिक सेफ जोन बन गए हैं। इन इलाकों में पुलिस अथवा वन विभाग की सक्रियता सुरक्षा के मद्देनजर नहीं रहती लिहाजा इसका बड़ा व्यापक इस्तेमाल नशे के कारोबार को स्थापित करने में हो रहा है। प्रखंड के चोरदाहा, दैहर, दादपुर, झापा, यवनपूर, चौपारण, ताजपूर, करमा, भगहर आदि पंचायतों के पचास से अधिक जंगली स्थलों पर इसकी खेती के लिए बीज डाल दिए गए हैं।

कडे़ नियमों के मानक को पूरा करने में असफल गौतम बुद्धा वन्य प्राणी आश्रयणी के बडे़ भू-भाग का इस्तेमाल पोस्ते अफीम की खेती के लिए हो रही है। आश्रयणी क्षेत्र के लगभग चार सौ एकड़ से अधिक भूमि पर अफीम लगाए गए हैं। वहीं प्रादेशिक वन भूमि प्रक्षेत्र के लगभग सौ एकड़ भूमि का इस्तेमाल अफीम तस्कर कर रहे हैं। वन कानून तस्करी पर अंकुश लगाने में सर्वथा अक्षम साबित हो रहे हैं। वन विभाग के हर तंत्र इस अनैतिक कार्य को नहीं रोक पा रहा।

इन इलाकों में हो रही खेती। 

सघन जंगल से घिरे दुरागढा, मोरनियां, सिकदा, करगा, अंजान, ढोढिया, पत्थलगड्डा, जमुनिया तरी,अहरी, नावाडीह, भदेल, बिगहा, चमरगड्डा, डोमाडाडी, बहेरवातरी, खैराटांड, मैसोखार, जागोडीह,करमा, असनाचुंआ आदि जंगल में बसे गांवों के बाहरी क्षेत्र में।

लग गये पौधे, जेसीबी का हो रहा धड़ल्ले से इस्तेमाल। 

एक समय उग्रवादियों के गढ़ के रूप में विख्यात जंगल के बडे़ भूभाग पर अब अफीम तस्करों का मजबूत नेटवर्क काम कर रहा है। बीते अक्टूबर माह में अफीम खेती के लिए जमीन समतल कर बीज लगा दिए गये हैं। बकायदा वन भूमि में बड़ी संख्या में मजदूर का इस्तेमाल किया गया है। कई जगहों पर जेसीबी से वन भूमि समतलीकरण किया गया। विशेषकर पटवन के स्रोतों के समीप जंगली नदी नालों के पास इसे लगाया जाता है। इस बार पानी की कमी के बीच जंगलों में विभागीय सांठगांठ से पटवन के लिए जेसीबी के इस्तेमाल कर छोटे छोटे कुएं बनाए जाने की खबर ग्रामीण सामने ला रहे हैं।


सुत्रों से मिली जानकारी के अनुसार चतरा, खुंटी सहित दूसरे राज्यों की फंडिंग से नशे का काला कारोबार फलफूल रहा है। इस वर्ष बीते पांच सालों की तुलना में दोगुना खेती की जा रही है। इसमें होने वाले बडे़ मुनाफे ने गांवों के बेरोजगार खेतिहर लोगों को आकर्षित कर लिया है। सूत्र बताते हैं कि मुनाफे का अंश मात्र इन्हें मिल पाता है। पर्दे के पीछे के हुनरमंद इस कार्य को लगातार बढ़ा रहे हैं। विडंबना है कि उग्रवादियों के गढ़ के कारण इन इलाकों से इसकी खेती का समूल नाश नहीं किया जा पा रहा है।

डीएफओ का क्या है कहना

गौतमबुद्ध वन्य प्राणी आश्रयणी के डीएफओ अवनिश चौधरी ने कहा कि उपायुक्त के नेतृत्व में ज्वाइंट आपरेशन किया जायेगा। जल्द कार्रवाई होगी।

टिप्पणियाँ