'कांतारा' ने भारत की करेंट टॉप 250 फिल्मों की सूची में भी नंबर 1 पर अपनी जगह बनाई है, जिसे हाल ही में IMDb द्वारा जारी किया गया था। कांतारा : डीह बाबा का आशीर्वाद है ये फिल्म

 'कांतारा' ने भारत की करेंट टॉप 250 फिल्मों की सूची में भी नंबर 1 पर अपनी जगह बनाई है, जिसे हाल ही में IMDb द्वारा जारी किया गया था।

कांतारा: डीह बाबा का आशीर्वाद है ये फिल्म


जंगल पर आदिवासियों के अधिकार को लेकर ये फ़िल्म जिस तरह से सरकार और आदिवासी, दोनों पक्षों की दुविधा दिखाती है, उसके लिये भी इस फ़िल्म को याद रखा जाएगा। 

"तटीय कर्नाटक में हमारी मिट्टी, परंपरा और संस्कृति" के बारे में एक फिल्म बनाना था जो राज्य के बाहर के क्षेत्र है वो इसे लेकर अवगत नहीं हैं। 

साउथ का सिनेमा बॉलीवुड की तरह अपने दर्शकों को यूरोप, पेरिस और लंदन के सपने नहीं दिखाता, न ही अपनी संस्कृति, परंपराओं और अतीत को लेकर मुँह बिचकाता है। साउथ का डायरेक्टर और दर्शक वर्ग, दोनों अपनी जड़ों से जुड़े हैं तथा उन्हें उस पर गर्व भी है।

कांतारा की शूटिंग से 20-30 दिन पहले नॉन-वेज खाना छोड़ दिया था। अभिनेता ने यह भी कहा कि कांतारा का हिंदी रीमेक नहीं बनाया जाना चाहिए। 

कांटारा का निर्माण केजीएफ फिल्मों के प्रोडक्शन हाउस होम्बले फिल्म्स द्वारा किया गया है। 

फिल्म के मुख्य कलाकार ऋषभ शेट्टी ने ही किया है लेखन और निर्देशन। 


होम्बले फिल्म्स 'कांतारा' बॉक्स ऑफिस पर भारी सफलता को एंजॉय कर रही है और फिल्म के कलाकार और पूरी टीम इसके लिए बहुत आभारी हैं। जहां फिल्म के एक्टर ऋषभ शेट्टी बॉक्स ऑफिस पर अपनी लेटेस्ट जीत का जश्न मना रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ वो और टीम फिल्म के प्रचार करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। शनिवार को वो और फिल्म की लीड एक्ट्रेस सप्तमी गौड़ा फिल्म का प्रमोशन करने के लिए दिल्ली के इंडिया गेट पहुंचे।

50 करोड़ से ज्यादा की कमाई कर चुकी है। 

कन्नड़ और हिंदी वर्जन्स में लाखों लोगों का दिल जीतने के बाद इसका बॉक्स ऑफिस कलेक्शन भी हर दिन लगातार बढ़ रहा है। 4 नवंबर शुक्रवार तक कुल 53.7 करोड़ के साथ कांतारा हिंदी मार्केट नंबर्स में अपने बॉक्स ऑफिस कलेक्शन में लगातार शानदार उछाल देख रहा है। बॉक्स ऑफिस पर शानदार ग्रोथ दर्ज करने के अलावा 'कांतारा' ने भारत की करेंट टॉप 250 फिल्मों की सूची में भी नंबर 1 पर अपनी जगह बनाई है, जिसे हाल ही में IMDb द्वारा जारी किया गया था।

कर्नाटक की परंपरा और संस्कृति दिखाना था। 

ऋषभ शेट्टी जिन्होंने इस थ्रिलर फिल्म की कहानी लिखी है और इसे निर्देशित भी किया है। उन्होंने इसके बारे में कहा कि, उनकी प्राथमिकता "तटीय कर्नाटक में हमारी मिट्टी, परंपरा और संस्कृति" के बारे में एक फिल्म बनाना था जो राज्य के बाहर के क्षेत्र है वो इसे लेकर अवगत नहीं हैं। फिल्म में ऋषभ शेट्टी के अलावा सप्तमी गौड़ा, किशोर और अच्युत कुमार भी मुख्य भूमिका में है। कांतारा का निर्माण केजीएफ फिल्मों के प्रोडक्शन हाउस होम्बले फिल्म्स द्वारा किया गया है। फिल्म में संगीत बी अजनीश लोकनाथ ने दिया है। 

ऋषभ शेट्टी की फिल्म कंतारा बॉक्स ऑफिस पर शानदार कमाई कर रही है। रिलीज के बाद से ही फिल्म टिकट खिड़की पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है। फिल्म में ऋषभ शेट्टी एक्ट्रेस सप्तमी गौड़ा के आपोजिट नजर आ रहे हैं। हाल ही में एक इंटरव्यू में ऋषभ ने फिल्म की शूटिंग के सबसे कठिन हिस्से का खुलासा किया। उन्होंने बताया कि कांतारा की शूटिंग से 20-30 दिन पहले नॉन-वेज खाना छोड़ दिया था। अभिनेता ने यह भी कहा कि कांतारा का हिंदी रीमेक नहीं बनाया जाना चाहिए। 


अभिनय का हिस्सा वाकई बेहद कठिन था। 

टाइम्स ऑफ इंडिया को दिये इंटरव्यू में ऋषभ शेट्टी ने कहा, "अभिनय का हिस्सा वाकई बेहद कठिन था। व्यक्त करने की वजह से नहीं बल्कि एक्शन सीन के कारण। विशेष रूप से 50-60 किलो वजन जो मुझे दैव कोला सीक्वेंस के दौरान ले जाना था। उस सीक्वेंस की शूटिंग के 20-30 दिन पहले नॉन-वेज खाना छोड़ दिया था। दैव कोला अलंकार पहनने के बाद, मैं नारियल पानी के अलावा कुछ भी नहीं पीता था। वे मुझे सीक्वेंस करने से पहले और बाद में प्रसाद देते थे।"

पहचान के संकट से जूझ रहे समाज में कांतारा फ़िल्म उस बूढ़े बाबा की तरह आई है, जो शहरी एलीट होने का स्वांग रचते अपने पोते को भरी महफ़िल से एकाएक "उठ मंगरुआ चल!" कहकर कंधे पर लाद लेती है और गाँव के डीह बाबा के सामने लाकर खड़ा कर देती है।

बचपन में सूरज ढलने के बाद हज़ार सिन्दूरी कंचों का लालच भी जिसे डीह बाबा के रास्ते से नहीं ले जा सकता था, जहाँ का भूत उसे रातों में अकेले सोने नहीं देता था और जिससे बचने का इकलौता उपाय डीह बाबा के स्थान पर माथा नवाना था, वही डीह बाबा अब उसके मज़ाक का सामान हैं और ये उसी डीह बाबा की फ़िल्म है।

उदारीकरण के बाद से ही हिंदी फ़िल्मों का दर्शक वर्ग पहचान के ऐसे संकट से जूझ रहा है, जिसका समाधान बॉलीवुड के पास नहीं है। तक़रीबन तीस सालों तक बॉलीवुड ने हिंदी पट्टी के मध्यवर्ग को अपने तत्त्वविहीन और ऊल-जुलूल कंटेंट से उलझाए रखा और पैसे कमाए। पर हर किस्से का इक इख़्तिताम होता है और हज़ार लिख दे कोई फ़तह ज़र्रे-ज़र्रे पर, शिक़स्त का भी अपना मुकाम होता है।

साउथ का सिनेमा मेनस्ट्रीम इंडियन सिनेमा के रूप में अपनी जगह बना रहा है, जबकि बॉलीवुड अब 'साउथ' और हॉलीवुड की चीप कॉपी करने में ही मौलिक सृजन का सुख ढूंढ रहा है।

बाहुबली पहली गैर-हिंदी फ़िल्म थी, जिसे मैंने थिएटर में देखा था और ये मैं तभी समझ गया था कि बात अब दूर तलक जाएगी।

दरअसल, साउथ का सिनेमा बॉलीवुड की तरह अपने दर्शकों को यूरोप, पेरिस और लंदन के सपने नहीं दिखाता, न ही अपनी संस्कृति, परंपराओं और अतीत को लेकर मुँह बिचकाता है। साउथ का डायरेक्टर और दर्शक वर्ग, दोनों अपनी जड़ों से जुड़े हैं तथा उन्हें उस पर गर्व भी है।

अजीब बात है कि आधुनिक मूल्यों की बात करने वाला बॉलीवुड अपनी फ़िल्मों में उत्कृष्टता लाने के बजाय विवादमूलक प्रसिद्धि पाने के फ़ॉर्मूले पर काम कर रहा है। बीते तीस सालों में बॉलीवुड ने मीनिंगफुल सिनेमा देने का जोखिम न के बराबर उठाया है और रीजनल सिनेमा इस मामले में बॉलीवुड को बहुत पीछे छोड़ चुका है।

ये फ़िल्म इस बात का प्रमाण है कि जबरिया आदर्श ढोने से न सिर्फ सिनेमा की प्रामाणिकता घटती है बल्कि सिनेमा भी ख़राब होता है। ऋषभ शेट्टी ने जिस तरह अपनी इस फ़िल्म के साथ न्याय किया है, उसे याद रखा जाएगा। फ़िल्म की शुरुआत में भैंसा दौड़ और मुर्गों की लड़ाई के दृश्यों में वो घुल गए हैं।

जंगल पर आदिवासियों के अधिकार को लेकर ये फ़िल्म जिस तरह से सरकार और आदिवासी, दोनों पक्षों की दुविधा दिखाती है, उसके लिये भी इस फ़िल्म को याद रखा जाएगा।

पर इस फ़िल्म का जो सबसे बड़ा आकर्षण है, उसे जानने के लिये आपको ये फ़िल्म खुद देखनी होगी। वो मैं नहीं बताउंगा।

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