कल से 9 दिन 9 रूपों की पूजा:मान्यता ऐसी कि श्रीराम ने की थी 16 दिन तक मां दुर्गा की पूजा, झारखंड में चंदवा समेत चार जगहों पर विशेष अनुष्ठान।

कल से 9 दिन 9 रूपों की पूजा:मान्यता ऐसी कि श्रीराम ने की थी 16 दिन तक मां दुर्गा की पूजा, झारखंड में चंदवा समेत चार जगहों पर विशेष अनुष्ठान।

 

कल, यानी 26 सितंबर से 9 दिनों तक मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होगी और दसवें दिन प्रतिमा विसर्जन किया जाएगा। हर तरफ अभी से पूजा की धूम है। बड़े और भव्य पंडाल बनाए जा रहे हैं। झारखंड में चार ऐसे स्थान हैं, जहां 16 दिनों तक दुर्गापूजा होती है। लातेहार के चंदवा में उग्रतारा मंदिर, बोकारो कोलबेंदी मंदिर, चाईबासा केरा मंदिर व सरायकेला में राजागढ़ स्थित मां पाउड़ी मंदिर में विशेष अनुष्ठान किया जाता है। यहां मान्यता ऐसी है कि भगवान राम ने लंका विजय के लिए बोधन कलश स्थापना कर 16 दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की थी। राजघरानाें ने इस परंपरा को 350-400 वर्षों से जारी रखा और आज भी परंपरा का निर्वाह किया जा रहा है। जिउतिया के पारण के दिन बोधन कलश स्थापना के साथ पूजा शुरू होती है। सप्तमी से प्रतिमा की आराधना होती है। हजारों लोग पूजा व दर्शन को आते हैं।

पान गिरने पर माना जाता है कि मां ने दे दी अनुमति

चंदवा शक्तिपीठ में मां उग्रतारा मंदिर के पुजारी पंडित अखिलानंद मिश्र व पंडित विनय मिश्र ने बताया कि जिउतिया के पारण के दिन कलश स्थापना होती है। 16 दिन पूजा के बाद विजयादशमी के दिन मां भगवती को पान चढ़ाया जाता है। आसन से पान गिरने पर माना जाता है कि भगवती ने विसर्जन की अनुमति दे दी। राज परिवार व पुजारी परिवार के बीच पान वितरण के बाद विसर्जन की पूजा होती है, उसके बाद आम लोगों की पूजा शुरू होती है। मां उग्रतारा मंदिर नगर में 16 दिवसीय शारदीय नवरात्र मनाने का विधान है। जीवित पुत्रिका पर्व की सुबह आश्विन कृष्ण पक्ष नवमी से शुक्ल पक्ष विजयादशमी तक शारदीय नवरात्र का पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

350 साल पुराना है बोकारो के कोलबेंदी दुर्गा मंदिर का इतिहास

कोलबेंदी दुर्गा मंदिर के पुजारी चंडीचरण बनर्जी ने बताया कि 350 साल पहले ठाकुर किशन देव ने मंदिर बनवाया था। उनके वंशज आज भी परंपरा निभा रहे हैं। लंका विजय के लिए भगवान राम ने जिउतिया अष्टमी के दिन बोधन कलश स्थापना कर मां की 16 दिन पूजा की थी। अश्विन व कार्तिक माह में राजा का भंडार खाली हो जाता था, इसलिए अकाल बोधन पूजा भी कहा जाता है। पूजा में बलि प्रथा को विजय का प्रतीक माना गया है। अष्टमी को संधि बलि का काफी महत्व है। संधि पूजा देश में एक साथ होती है। यहां षष्ठी तक कलश, सप्तमी से मूर्ति पूजा और बलि की परंपरा है।

सरायकेला में 1620 में शुरू हुई थी पूजा

1620 में राजा विक्रम सिंहदेव ने राजमहल परिसर में दुर्गापूजा शुरू की थी। राजपरिवार की 64 पीढ़ियां पूजा करते आ रही हैं। सरायकेला राजा प्रताप आदित्य सिंह देव ने कहा कि जिउतियाष्टमी से महाष्टमी तक 16 दिन पूजा होती है। मां पाउड़ी का मंदिर राजपरिसर में है। यहां नवमी को नुआखाई होती है। इस दिन नई फसल से तैयार चावल का भोग देवी पर चढ़ता है। मंदिर में स्त्री साड़ी व पुरुष धोती-गमछा पहनकर जाते हैं।



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