सूर्य देव के साथ छठी मैया को अर्पित है आस्था का महापर्व, महाभारत काल से हो रही छठ पूजा। छठ पूजा के नियम, महत्व, मान्यताएं, अस्तचलगामी,उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने का समय जानें!
सूर्य देव के साथ छठी मैया को अर्पित है आस्था का महापर्व, महाभारत काल से हो रही छठ पूजा। छठ पूजा के नियम, महत्व, मान्यताएं, अस्तचलगामी,उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने का समय जानें!
Chhath Puja 2022: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर नहाय-खाय के साथ छठ महापर्व की शुरुआत हो जाती है और अगले चार दिनों तक आस्था के महापर्व छठ की धूम रहती है। यह व्रत संतान प्राप्ति और उनकी लंबी उम्र की कामना के साथ किया जाता है। छठ पर्व में नहाय खाय के दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है और चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ व्रत का पारण किया जाता है। यह व्रत सूर्य देव के साथ ही छठी मैया को अर्पित है। जानें महत्वपूर्ण बातें।
छठ पर्व पर सूर्यदेव के साथ ही छठी मईया की होती है उपासना।
छठ पूजा सूर्यदेव के साथ ही छठी मईया को अर्पित महापर्व है। इस महापर्व के दौरान अस्तचलगामी सूर्य और उदीयमान सूर्य की उपासना करने के साथ ही छठी मैया की भी पूजा की जाती है। चार दिन के इस पर्व को महापर्व के रूप में मनाया जाता है। पूरी दुनिया में यह एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमें उगते और डूबते हुए सूर्य दोनों को अर्घ्य देने की परंपरा है। छठ पूजा पर एक ओर जहां पारंपरिक रूप से प्रसाद बनाया जाता है, लोकगीत गाये जाते हैं वहीं दूसरी तरफ सारे विधि-विधान भी पारंपरिक रूप से निभाये जाते हैं। जानें कौन हैं छठी मैया? सूर्य देव की और छठी मइया की उपासना, पूजा से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें।
सूर्यदेव की बहन और ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं छठी मइया
धार्मिक शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन हैं। पौराणिक मान्यताओं, किवदंतियों के अनुसार ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया। सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आपको छह भागों में विभाजित किया। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है।
शिशु के जन्म के छठे दिन भी छठी मइया की होती है पूजा
छठ के दिन सूर्य देव के साथ छठी मैया की पूजा की जाती है साथ ही हिंदू धर्म में शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं देवी की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि छठ देवी या छठी मइया की उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। नवरात्रि पर षष्ठी तिथि के दिन भी षष्ठी माता की ही पूजा की जाती है।
छठ महापर्व की शुरुआत महाभारत काल से
पौराणिक कथाओं के अनुसार, छठ महापर्व की शुरुआत महाभारत काल से ही मानी जाती है। भगवान सूर्य के आशीर्वाद से ही कुंती पुत्र कर्ण को कवच और कुंडल प्राप्त हुए और वह सूर्य देव के समान ही तेजस्वी, बलशाली और महान योद्धा बने। ऐसा कहा जाता है कि जल में कमर तक खड़े रहकर सूर्य देव की पूजा की परंपरा कर्ण ने शुरू की थी। कर्ण घंटों तक कमर भर पानी खड़े होकर सूर्य की उपासना करते थे और उनको जल अर्पित करते थे। इसलिए आज भी छठ के तीसरे और चौथे दिन कमर तक जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। महाभारत काल में जब कौरवों से जुए में पांडव सारा राजपाट हार गए थे तब पांडव पत्नी द्रौपदी ने छठ महाव्रत किया था और इस व्रत के प्रताप से ही पांडवों को उनका पूरा राजपाट वापस मिला था।
Chhath Puja 2022: छठ पूजा के नियम, महत्व, मान्यताएं, अस्तचलगामी,उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने का समय जानें!
नहाय खाय के साथ 28 अक्टूबर ये छठ पूजा की शुरुआत हो रही है। नहाय खाय के दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन अस्तचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है फिर चौथे दिन उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ महा पर्व का समापन होता है। इस पूरे व्रत के दौरा स्वच्छता और साफ सफाई का अत्यंत विशेष महत्व होता है यहां जानें छठ महापर्व के दौरान क्या करें और क्या न करें। छठ पूजा के दौरान शुभ योग, 30 अक्टूबर को अस्तलचगाी सूर्य को अर्घ्य देने का समय और 31 अक्टूबर को उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने का समय क्या है?
छठ पूजा 2022 महत्वपूर्ण तिथियां
छठ पूजा का पहला दिन- नहाय खाय- 28 अक्टूबर 2022, शुक्रवार
छठ पूजा का दूसरा दिन- खरना- 29 अक्टूबर 2022, शनिवार
छठ पूजा का तीसरा दिन- संध्या अर्घ्य- 30 अक्टूबर 2022, रविवार
छठ पूजा का चौथा दिन- प्रात: अर्घ्य- 31 अक्टूबर 2022, सोमवार
छठ पूजा 2022 अर्घ्य का समय
संध्या अर्घ्य- सूर्यास्त का समय 30 अक्टूबर -शाम 05 बजकर 37 मिनट से
प्रातः अर्घ्य- सूर्योदय का समय 31 अक्टूबर- सुबह 06 बजकर 31 मिनट तक
छठ पूजा का पहला दिन: नहाय-खाय
28 अक्तूबर, शुक्रवार
सूर्योदय- सुबह 06 बजकर 30 मिनट पर
सूर्यास्त- शाम 05 बजकर 39 मिनट पर
नहाय-खाय का शुभ समय (शोभन,सर्वार्थ सिद्धि और रवि योग)
शोभन योग: सुबह से शुरू
सर्वार्थ सिद्धि योग: सुबह 06 बजकर 30 मिनट से 10 बजकर 42 मिनट तक
रवि योग: सुबह 10 बजकर 42 मिनट से आरंभ
छठ व्रत के दौरान गलती से भी न करें ये काम
➡️छठ पूजा नहाय खाय के बाद मांस, मदिरा जैसी चीजों का सेवन घर के सदस्य न करें और न ही ऐसी चीजें घर लायें।
➡️जिस भी घर में छठ पूजा हो रहा हो वहां के सदस्य सिगरेट, खैनी जैसी चीजों के सेवन से परहेज करें।
➡️छठ पूजा के चार दिनों में घर में सात्विक भोजन बनायें, प्याज, लहसुन का प्रयोग न करें।
➡️छठ पूजा का प्रसाद जहां बनायें वहां कोई भी सदस्य खाने न बैठे, साथ ही ऐसी जगह चुनें जहां गंदगी, धूल या सखरी न हो।
➡️छठ पूजा के दाैरान ब्रह्मचर्य का पालन करें।
➡️किसी के बारे में बुरा न सोंचे, न ही करें।
➡️निंदा करने से बचें, गलत, बुरे विचारों से दूर रहें, कलह, द्वेष से बचें।
➡️व्रत के तीन दिनों तक पलंग पर सोने के बजाय अपना बिस्तर जमीन पर तैयार करें।
➡️तीन दिनों तक साफ-सुथरे, स्वच्छ कपड़े पहनें करें।
➡️भगवान सूर्य को अर्घ्य देते समय लोहे, स्टील या प्लास्टिक के पात्र का इस्तेमाल न करें।
छठी मैया की पूजा का महत्व, मान्यताएं, पौराणिक कथाएं
छठ पूजा सूर्यदेव की उपासना और छठी मैया की पूजा का दिन है इसे महापर्व के रूप में मनाया जाता है। यह एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमें उगते और डूबते हुए सूर्य दोनों को अर्घ्य देने की परंपरा है। छठ पूजा पर एक ओर जहां पारंपरिक रूप से प्रसाद बनाया जाता है, लोकगीत गाये जाते हैं वहीं दूसरी तरफ सारे विधि-विधान भी पारंपरिक रूप से निभाये जाते हैं। शास्त्रों की बात करें तो छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्यदेव की बहन हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया। सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आपको छह भागों में विभाजित किया। इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है। प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मैया के नाम से जाना जाता है। वहीं शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है। इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है। नवरात्रि पर षष्ठी तिथि के दिन भी षष्ठी माता की ही पूजा की जाती है।
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